खबर लिखने के छह सूत्र हैं। इस सूत्र का प्रयोग कर खबर को और बेहतर रूप में पाठकों के बीच रखा जा पाता है। खबर लिखने के छह सूत्र ककार कहे जाते हैं। ये सूत्र क्रमशः क्या, कब, कौन, कहां, क्यों और कैसे को सिलसिलेवार तरीके से इस्तेमाल किया जाता है। पहले चार ककार सूचनात्मक होते हैं। आखरी के दो ककार विवरणात्मक होते हैं। ये सूत्र खासकर घटनात्मक खबर को और प्रभावी बनाता है।
बुधवार, 8 दिसंबर 2021
शराब बरामद हो रहे, कारोबारी पकड़े जा रहे पर मिलना नहीं हुआ बंद
शराब कारोबारी पकड़े जा रहे, फिर भी मिल रहे शराब
आखिर कौन लमंगवा रहे शराब की खेप, खोज नहीं
चार हजार केस दर्ज में 40 को हुई सजा, खगड़िया टॉप
खगड़िया जिले में शराब बंदी कानून की जद में पिछले पांच वर्षों में चार हजार के करीब लोग आये हैं। जिसमें अधिकांश जेल भेजे गए। दर्ज केस में अब तक 34 मामले में 40 लोगों को कोर्ट से सजा हो चुकी है। इन पांच सालों में कार्रवाई तो हुई पर अबैध शराब कारोबार खत्म नहीं हुई। आये दिन शराब की खेप और इसमें शामिल कारोबारी पकड़े जा रहे हैं। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि जिले में शराब के बड़े तस्कर तक पुलिस की हाथ नहीं पहुंच पा रही है। आखिर शराब मिल लगातार कैसे रही है सवाल है।
कोर्ट से सजा मामले में खगड़िया मुंगेर प्रमंडल में नंबर एक पर है। फिलहाल 513 मामले का कोर्ट में ट्रायल चल रहा है। पुलिस ने 2469 तथा उत्पाद विभाग ने 1344 लोगों पर केस दर्ज कर जेल भेजा है। शराब कारोबार और बरामद मामले में कई बड़े कारोबारी फरार चल रहे हैं। जिले कई बड़ी शराब की खेप जब्त की जा चुकी है। पर, शराब कारोबार के अब भी कई बड़ी मछलियां कार्रवाई से बच रहे हैं। शराब की खेप बरामद मामले में अमूनन वाहन के चालक धराए या फिर छोटे कारोबारी पकड़े जा रहे हैं। शराब की खेप मांगने वाले बड़े तस्कर के नाम उगलवाने में पकड़े गए वाहन चालक और शराब बेचने वालों को रिमांड पर लेकर पुलिस सख्ती दिखाए तो शराब के नेक्सेस ध्वस्त हो सकते हैं। गत नवंबर माह में जिले में तीन शराब की बड़ी खेप पुलिस ने बरामद की। एक मामले में उत्पाद पुलिस को एक मैजिक वाहन से 890 लीटर विदेशी शराब की खेप हाथ लगी थी। जिसमे चालक भी पकड़ा गया। दो मामले में जिला पुलिस को करीब तीन सौ लीटर शराब जब्त करने में सफलता मिली। उत्पाद अधीक्षक विकेश कुमार ने बताया कि शराबबंदी को सख्ती से लागू कराने के साथ साथ कोर्ट से सजा भी दिलाई जा रही।
शराबबंदी के बाद अब तक शराब कारोबार और शराब सेवन करने में पकड़े गए आरोपियों में 40 लोगों को कोर्ट से सजा दी जा चुकी है। 34 मामले में अधिकांश शराब तस्करी में सजा हुई है। दो दिन पहले कोर्ट से दो कारोबारी को पांच पांच साल की सजा सुनाई गई है। कोर्ट से सजा दिलाने में भले देरी दिख रही है पर, मुंगेर प्रमंडल में खगड़िया जिला सजा दिलवाने में पहले नंबर पर है। जिले की पुलिस 513 मामले में कोर्ट में ट्रायल करा रही है। जिसमे उत्पाद पुलिस 154 लोगों पर ट्रायल चला रही है।
दर्ज मामले में सवा तीन सौ में चार्जसीट बांकी: अब तक दर्ज मामले में पुलिस स्तर से सवा तीन सौ मामले में कोर्ट में चार्जशीट जमा नहीं की जा सकी है। जिसमे उत्पाद पुलिस के 25 मामले हैं। हालांकि ये मामले लंबित नहीं माने जा सकते हैं। सभी दो माह के अंदर के केस हैं। बताया जाता है कि पुलिस 60 दिनों के अंदर कोर्ट में चार्जशीट दायर नहीं कर पा रही है।
आरोप पत्र जमा करने का कम से कम 60 दिनों का रहता है समय: जिले में वर्तमान में इस समय सीमा के अंदर का ही सवा तीन सौ अरोप पत्र जमा नहीं किए जा सके हैं। जिले में अब तक चार हजार के करीब लोगों पर केस दर्ज किए जा चुके हैं। अधिकांश जेल भी भेजे गए। दर्ज केस में अब तक 34 मामले में 40 लोगों को कोर्ट से सजा हो चुकी है। कई कारोबारी पर दो मामले में सजा सुनाई गई है। जिसमें स्पेशल पीपी उत्पाद प्रियरंजन कुमार ने खासी सक्रियता दिखायी है।
तैयारी
● जिले में फिलहाल 513 मामले का कोर्ट में चल रहा है ट्रायल
● पुलिस ने 2469 और1344 उत्पाद विभाग ने किया केस
रविवार, 5 दिसंबर 2021
medha ko samman
गुरुवार, 4 जून 2020
श्रमिक और स्पेशल ट्रेन के बीच बदली कोरोना के मायने
एक दिन में श्रमिक और आम रेल यात्री की परिभाषा ने कोरोना के संदिग्ध के मापदंड भी बदल दिए। भय और बेबसी के बीच चली श्रमिक ट्रेन से आने वाले प्रवासी थे। सब स्पेशल ट्रेन से आम रेल यात्री आ जा रहे हैं। तो कोरोना संक्रमण की स्थिति को नकार दिया गया। दो दिन बाद ही स्थिति सामने आने लगी।
अब समझिए दो माह की लॉक डाउन में पहली जून से छूट दी गई। बिहार के एक छोटे से खगड़िया जिले की ही बात लें तो देखिए। दिल्ली से पहली ट्रेन तीन जून को खगड़िया पहुँची। ट्रेन से करीब 60 आम रेल यात्री उतरे। स्टेशन से सभी यात्री सीधे अपने अपने घर गए। ये बात और है कि प्लेटफार्म पर थर्मल स्केनिंग हुई। आज भी दिल्ली से महानंदा ट्रेन आई। ये सिलसिला रोज की अब। तीन दिन पहले तक दिल्ली सहित 11 रेड जोन शहर से श्रमिक नाम की ट्रेन से आने वाले प्रवासियों को संदिग्ध मानते हुए 14 दिनों तक कम से कम घर जाने की इजाजत नहीं हुआ करती थी। दिल्ली से आने वाले में ही ज्यादा केस भी सामने आए हैं। अब जब पहली जून से स्पेशल ट्रेन चलाई जा रही है तो अब आने वाले आम रेल यात्री हैं। प्रवासी हैं नहीं तो संदिग्ध भी नहीं। तो फिर कोरोना की कोई बात भी कहां होगी ये ही न। अब दिल्ली और मुंबई से आये लोग समाज से सीधे संपर्क में होंगे। स्थिति समझा जा सकता है। इस रूट में चार जोड़ी ट्रेन चलाई गई है। दिल्ली और मुंबई से भी।
बुधवार, 3 जून 2020
कोरोना के बढ़ते राह के बीच छूट
कोरोना संकट कम होने तो छोड़िए भयावह स्थिति की ओर है। इस बीच लॉक डाउन खत्म ही हो गई। ऐसा ही तो है ट्रेन चलने लगी। सड़क पर वाहन बेधड़क दौड़ने लगी। बाजार गुलजार हो गई। कल तक श्रमिक ट्रेन से आने वालों की निगरानी और आज स्पेशल ट्रेन से आने वालों की कोई रोक टोक नहीं। यहां तक देश के रेड जॉन के 11 शहर से भी ट्रेनें पहुँचने लगी। खगड़िया में भी आज दिल्ली से पहली ट्रेन पहुँचेगी। हर तरफ पहले जैसा माहौल मानो कोरोना खत्म हो गई। कोरोना से बचाव के साधन को और कारगर के बजाय जनता को खुद की हालत पर रहने छोड़ दी गई। इस बीच चुनावी मुद्दा गरम हुई है। जान छोड़ चुनाव की चर्चा हो रही। छूट भी राजनीति महत्वाकांक्षी हावी हुई है। छूट मिली और जांच का दायरा बढ़ा तो कोरोना के आंकड़े भी अपनी भयावहता की ओर इशारा करने लगी। खगड़िया में ही आंकड़े तीन सौ के करीब आ पहुंची है। एक दिन में तीन जून को रेकोर्ड 85 संख्या सामने आई। ये तब है जब दो दिन पहले ही हर तरफ राहत मिली है। जब कम आंकड़े थे तब सख्ती ऐसी सड़क पर निकलने पर काईवाई। और आज जब स्थिति बढ़ रही तो सब कुछ सामान्य। ये कैसी मजबूरी की जिंदगी बचाने की रोना पर आ जाएं। और कुछ करने की जगह मजबूरी पर छोड़ दें।
-खुद सतर्क रहें तभी बचेंगे।
सोमवार, 1 जून 2020
...क्या खत्म हो गई वो हवा कल की आज
...और क्या अब वो कल जो हवा का रुख खराब था आज सब एकदम से बदल गया। क्या एक हमारी बनाई व्यवस्था के वो आधीन हुए थे। जो सब कुछ खुल गए तो बेफ़िक्री माहौल भी हो गई। कल तक बरती गई एहतियात और आज एक दिन में ही सब कुछ फिर पहले जैसे रह गई। सवाल तो फिर वही है। जो हालात कल थे आज भी वही है। यूं कहें और खराब। इस बीच बेफिक्र हुई हैं अंदाजे कोरोनो समझ सकते फिर सब कैसे हम कैसे चल पड़े हैं? लॉक डाउन अनलॉक के बीच ही क्या कोरोना फंसा था। फिर एकदम सिस्टम रुक क्यों गई। क्या हालत पर रह जाने तो नहीं दिया गया। अब समझिए कल तक जो प्रवासी आ रहे थे शक के दायरे में थे अब नहीं। एक दिन में हवा बदल गए क्या। श्रमिक ट्रेन आज से स्पेशल ट्रेन जो हो गई ये ही न। दिल्ली और मुंबई न जाने कहाँ कहाँ से ट्रेन आएगी जाएगी। सब अपने अपने राह आये गए हो जाएंगे। फिर सरकारी क्वारंटीन की न झंझट और न ही कोई पाबंद। ट्रेन चलने लगी। सड़क पर वाहन निकलने लगी। बाजार खुलने लगी। भीड़ को न रोक न टोक सब कुछ पटरी पर आने लगी। इस बीच जो खौफ लिए ढाई माह से गुजरा आ रहा एक दो दिन में ही बेखौफ हो गया। सो क्या खौफ बस में आ गया। या फिर खौफ के बीच बनी व्यवस्था हटने मात्र से बेफिक्र रह गया। नहीं न। हालात अपनी इरादे इजहार बयां कर रही। और हम बेफिक्र हुए जा रहे। हालात से खुद लड़ने वो भी अनजाने से।
सतर्क रहें सुरक्षित रहें।
रविवार, 31 मई 2020
एक शब्द भी बन जाती राजनीति
राजनीति में भी राजनीति एक स्वभाव बन गया है। अब तो एक शब्द पर भी राजनीतिक कटाक्ष चल पड़ी है। एक शब्द जो अपने आप में सामर्थ और सम्मान का बोध कराता है भी अब नागवार जैसे हुआ है। इतना कुछ कह देने और हाल में एक शब्द पर मची शब्द युद्ध की कर्कश आवाज आपके भी कान ने महसूस और आंखों को कुछ दिनों से ज्यादा ही वास्ता हुआ ही होगा। तो आप समझ भी रहे होंगे हम किस एक शब्द की चर्चा यहाँ कर रहे। अब ये आत्मनिर्भर शब्द ही तो है न कोई शब्दभेदी तो नहीं न है। ये कोई आज इजात तो नहीं हुआ। हां ये शब्द एक राजनीतिक मंच से ही न आया। हमें तो खुद में शब्द की भाव रूप में भी सामर्थ का बोध दिखता है। पर ऐसा क्या आज हो गया इस भाव अब नहीं भाने लगा भी है। पर, राजनीतिक नजर से ही वरना इससे कौन अछूता रहना चाहेगा। आप ही सोचो फिर क्या हो गया अब खुद की आत्मनिर्भरता पर इतराने से। आत्मसम्मान किसको नहीं भाता भी है। आत्मसुरक्षा और आत्मरक्षा की अभी तो दूसरों के बजाय खुद से ही सबको निहायत वास्ता पड़ी है। आत्मनिर्भर होने के लिए ही तो जिंदगी में भागदौड़ है। खुद भी चाहत होती है। अब जब आज खुद को मजबूत खुद की परिस्थिति और स्थिति भी है तो इस ओर अपने आप को मजबूत करने की सोच तो रखनी भी होगी। कम से कम परिस्थितियों से लड़ने में खुद सक्षम होने में गुरेज क्या है। एक रोजी की ही सवाल न है। कुछ तो एक दूसरे पर निर्भरता भी तो चाहिए न। फिर हर्ज क्या है बोलने, सोचने और चलने में।
भाव: एक सामर्थ