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सोमवार, 10 अक्टूबर 2022

...और वो आती जाती खत

   शायद आज भी अपनों के बीच इतनी फासले न होती वो एक खत के आते रहना होता तो...आज भी आपको  अपनों के खैर मकदम लेकर आती खत की याद जरूर आती होगी। आएगी भी क्यों नहीं मीलों दूर के बीच तब एक खत ही तो जोड़े रखने का जरिया हुआ करती थी। वो एक खत के मिलने और भेजने का एहसास भले ही न रही। पर, गुजरे समय के साथ वो आज भी बिसर नहीं सकी। वो खत आना जाना क्या बंद हुआ तो हम अपनों से एहसास रूप से दूर भी होते चले...आज ये तेज होती रफ्तार भी कहां खड़ी कर दी। जब अपनों तक संदेश पहुँचने डाकिया जरिया हुआ करते थे। आज डाकिया है। पर, वो खत अब नहीं आते। तब खत का इंतजार भी अपनों के कितने करीब रखा करती थी। आज वो बात कहाँ जब डाकिये की आवाज पर हर कोई अपनों की संदेश भरी खत आने की उम्मीद लिए दौड़ पड़ते थे। अब तो अपनों से मुँह फेर लेने की अदा खूब भाने लगी। अब तो नजदीकियां भी दूरी बढ़ाने लगी है। खत की जाती दौर कि यादें आज भी हमें रोमांचित करती है
...सदी बिता जाने पर भी खत की वो मजमु बिसराये नहीं जा रहे हैं।
By:R@jeev

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