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शनिवार, 24 अगस्त 2019

तल्ख हैं उसके मेरे रिश्ते
बातों बात में हुई खिलाफत
अंजाम ए किसे अब परवाह
किस्सा अब ये आम हो गई

खामोश लब तेरी खातिर

इजहारे दिल न किया कभी तेरे खफा होने के डर से
इंतजार आज भी बची है तेरी इरादे दिल जानने बस
आज भी लव खामोस है दिल ए हाल तुम्हे बताने से
डरता हूँ कहीं जग हँसाई न हो जाये तरी इस जमाने

तू कहे तो जीना छोड़ दूं,
    एक क्या सौ बार कर दूं।
निसार कब के दिल हुआ तुम पे,
    एहसास तो जरा खुद में कर देख।।

शुक्रवार, 16 अगस्त 2019

खुला बाजार

बेईमान बैठा बाजार सरेआम,
      बिकता जो आज कल इमान।
मोल का आज होने लगा तौल,
    बेग़ैरत हो गया जो आज जहां।।

रविवार, 7 अप्रैल 2019

जमाने का सितम

अभी सूरज नहीं डूबा जरा होने तो दे शाम।
     खुद लौट जाऊंगा मुझे होने तो दे नाकाम।।
मुझे रुसवा करने का बहाना तलासता है जमाना।
   खुद हो जाऊंगा बदनाम पहले हो तो जाने दे नाम।।

शनिवार, 30 मार्च 2019

...और कुछ तो है

मंजिलें खामोश है ,शोर करता ये रास्ता तो है,
दिल्लगी का हीं सही ,साथ कोई वास्ता तो है,
कौन कहता है हमारे दरमियाँ कुछ भी नहीं,
नामुक़्कमल इक अधूरी अनकही दास्ताँ तो है..
                        मेरी कलम से...

शनिवार, 23 मार्च 2019

नफरत ए इरादे

फासले कहीं न हो जाये तेरे मेरे दरमियां
इल्जाम इस क़दर न लगाओ तुम बेहिसाब
उठाओ नजरें न इस तरह जख्म हो जाए जर्रा-जर्रा
नफरतों को हवा न दो और खिलाफत हो न जाए जमाने