मेरे ब्लॉग पर बेबाक़ और सीधी बात।
मंजिलें खामोश है ,शोर करता ये रास्ता तो है, दिल्लगी का हीं सही ,साथ कोई वास्ता तो है, कौन कहता है हमारे दरमियाँ कुछ भी नहीं, नामुक़्कमल इक अधूरी अनकही दास्ताँ तो है.. मेरी कलम से...
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