खगड़िया। देश की आजादी को जिले के कई लोगों ने अपनी शहादत दी। इन वीर शहीदों में महज 21 साल की उम्र में सदर प्रखंड के माड़र गांव के स्नातक के छात्र प्रभुनारायण सिंह ने भी शहादत दे जिले को गौरवान्वित कर दिया। उनका घर सदर प्रखंड अन्तर्गत माड़र गांव में था। वे भाई में अकेले थे। शहर के होमगार्ड ऑफिस रोड के स्वतंत्रता सेनानी भरत पोद्दार बताते हैं शहीद प्रभुनारायण बनारस यूनिवर्सिटी के छात्र थे। वहां स्वतंत्रता आन्दोलन की रोज एक घंटे रोज पढ़ाई होती थी। महात्मा गांधी ने जब 9 अगस्त 1942 में जब अंग्रेजों भारत छोडा़े का नारा दिया ते आजादी के दीवाने क्रांतिकारी शहीद प्रभुनारायण बनारस से 12 अगस्त की शाम खगड़िया के लिए प्रस्थान कर गए। खगड़िया जब पहुंचे तो गांव भी नहीं गए। शहर से सटे सन्हौली गांव जाकर अपने नौजवान साथियों को तिरंगा झंडा के साथ एकत्रित किया। वहां से अंग्रेजों का विरोध करते हुए खगड़िया मुंगेरिया चौक की ओर कूच गए। वहां पर कैंप कर रहे अंग्रेज सिपाहियों ने तिरंगा थामे प्रभुनारायण को गोली मारने की धमकी दी। अंग्रेज सिपाहियों की धमकी को अनसुना करते साहसी प्रभुनारायण अपनी कमीज का बटन खोलते हुए कहा कि वे पीछे नहीं हटेंगे। तिरंगा लेकर जैसे ही आगे बढ़े अंग्रजों ने उन्हें तीन गोलियां दाग दी। जिसमें दो गोली उसके सीने तथा एक गोली पैर में लगी। वही पर 13 अगस्त को 1942 को वे शहीद हो गए। वे बताते हैं कि उस समय प्रभुनारायण के साथ वे भी उनके साथ थे। गोली चलने के बाद सभी लोग तितर बितर हो गए।
शहर के राष्ट्रीय हाईस्कूल में रखा गया था पार्थिव शरीर: शहादत के बाद उनका पार्थिव शरीर शहर के राष्ट्रीय उच्च विद्यालय में रखा गया। जहां देखने वालों की भीड़ उमड़ पड़ पड़ी। अंग्रेजों के प्रति लोगों के चेहरे पर गम व गुस्सा खासा देखा जा रहा था। दूसरे दिन सुबह शवयात्रा निकलकर उनके माड़र पहुंचा। जहां नवटोलिया गांव में उनका अंतिम संस्कार किया गया। जहां अश्रूपूरित नेत्रों से लोगों ने अपने लाल को अंतिम विदाई दी।
बचपन से ही थे आंदोलनकारी
प्रभुनारायण का जन्म 1921 में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा रामगंज में व माध्यमिक शिक्षा श्यामलाल हाईस्कूल में हुई थी। शीतल प्रसाद सिंह व चंपा देवी के इकलौते संतान प्रभुनारायण बचपन से ही आन्दोलनकारी थे। उन्होंने संघर्ष कर न केवल गांव बल्कि आसपास के गांवों में भी मजदूरों को उचित मजदूरी दिलवायी थी। जिस समय शहीद प्रभुनारायण की शहादत हुई उस समय उनकी पत्नी सिया देवी गर्भवती थी। पुत्र के जन्म होने पर उसका नाम हिम्मत प्रसाद सिंह रखा गया।
जहां शहीद हुए लोगों ने लगा दी प्रतिमा
शहीद प्रभुनारायण जहां शहादत दी उस स्थल पर लोगों ने वीर सेनानी की प्रतिमा स्थापित कर दी। वहीं माड़र उत्तरी गांव में भी उनके सम्मान में स्मारक की स्थापना की गई। अमर शहीद प्रभुनारायण सिंह स्मारक निर्माण समिति के संयोजक विजय कुमार सिंह बनाए गए। वही कमेटी के अन्य सदस्यों में नरसिंह मंडल, रामसकल शर्मा, मुरली मनोहर भारती, शंभूनाथ मंडल आदि बताते हैं कि स्मारक स्थल पर हर साल उनके शहादत दिवस पर 13 अगस्त को झंडा झुकाकर राष्ट्रीय शोक मनाया जाता है।
शहर के मुंगेरिया चौक पर स्थापित शहीद प्रभुनारायण की प्रतिमा।