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बुधवार, 3 जून 2020

कोरोना के बढ़ते राह के बीच छूट

कोरोना संकट कम होने तो छोड़िए भयावह स्थिति की ओर है। इस बीच लॉक डाउन खत्म ही हो गई। ऐसा ही तो है ट्रेन चलने लगी। सड़क पर वाहन बेधड़क दौड़ने लगी। बाजार गुलजार हो गई। कल तक श्रमिक ट्रेन से आने वालों की निगरानी और आज स्पेशल ट्रेन से आने वालों की कोई रोक टोक नहीं। यहां तक देश के रेड जॉन के 11 शहर से भी ट्रेनें पहुँचने लगी। खगड़िया में भी आज दिल्ली से पहली ट्रेन पहुँचेगी। हर तरफ पहले जैसा माहौल मानो कोरोना खत्म हो गई। कोरोना से बचाव के साधन को और कारगर के बजाय जनता को खुद की हालत पर रहने छोड़ दी गई। इस बीच चुनावी मुद्दा गरम हुई है। जान छोड़ चुनाव की चर्चा हो रही। छूट भी राजनीति महत्वाकांक्षी हावी हुई है। छूट मिली और जांच का दायरा बढ़ा तो कोरोना के आंकड़े भी अपनी भयावहता की ओर इशारा करने लगी। खगड़िया में ही आंकड़े तीन सौ के करीब आ पहुंची है। एक दिन में तीन जून को रेकोर्ड 85 संख्या सामने आई। ये तब है जब दो दिन पहले ही हर तरफ राहत मिली है। जब कम आंकड़े थे तब सख्ती ऐसी सड़क पर निकलने पर काईवाई। और आज जब स्थिति बढ़ रही तो सब कुछ सामान्य। ये कैसी मजबूरी की जिंदगी बचाने की रोना पर आ जाएं। और कुछ करने की जगह मजबूरी पर छोड़ दें।
     -खुद सतर्क रहें तभी बचेंगे।

सोमवार, 1 जून 2020

...क्या खत्म हो गई वो हवा कल की आज

  ...और क्या अब वो कल जो हवा का रुख खराब था आज सब एकदम से बदल गया। क्या एक हमारी बनाई व्यवस्था के वो आधीन हुए थे। जो सब कुछ खुल गए तो बेफ़िक्री माहौल भी हो गई। कल तक बरती गई एहतियात और आज एक दिन में ही सब कुछ फिर पहले जैसे रह गई। सवाल तो फिर वही है। जो हालात कल थे आज भी वही है। यूं कहें और खराब। इस बीच बेफिक्र हुई हैं अंदाजे कोरोनो समझ सकते फिर सब कैसे हम कैसे चल पड़े हैं? लॉक डाउन अनलॉक के बीच ही क्या कोरोना फंसा था। फिर एकदम सिस्टम रुक क्यों गई। क्या हालत पर रह जाने तो नहीं दिया गया। अब समझिए कल तक जो प्रवासी आ रहे थे शक के दायरे में थे अब नहीं। एक दिन में हवा बदल गए क्या। श्रमिक ट्रेन आज से स्पेशल ट्रेन जो हो गई ये ही न। दिल्ली और मुंबई न जाने कहाँ कहाँ से ट्रेन आएगी जाएगी। सब अपने अपने राह आये गए हो जाएंगे। फिर सरकारी क्वारंटीन की न झंझट और न ही कोई पाबंद। ट्रेन चलने लगी। सड़क पर वाहन निकलने लगी। बाजार खुलने लगी। भीड़ को न रोक न टोक सब कुछ पटरी पर आने लगी। इस बीच जो खौफ लिए ढाई माह से गुजरा आ रहा एक दो दिन में ही बेखौफ हो गया। सो क्या खौफ बस में आ गया। या फिर खौफ के बीच बनी व्यवस्था हटने मात्र से बेफिक्र रह गया। नहीं न। हालात अपनी इरादे इजहार बयां कर रही। और हम बेफिक्र हुए जा रहे। हालात से खुद लड़ने वो भी अनजाने से।
    सतर्क रहें सुरक्षित रहें।

रविवार, 31 मई 2020

एक शब्द भी बन जाती राजनीति

  राजनीति में भी राजनीति एक स्वभाव बन गया है। अब तो एक शब्द पर भी राजनीतिक कटाक्ष चल पड़ी है। एक शब्द जो अपने आप में सामर्थ और सम्मान का बोध कराता है भी अब नागवार जैसे हुआ है। इतना कुछ कह देने और हाल में एक शब्द पर मची शब्द युद्ध की कर्कश आवाज आपके भी कान ने महसूस और आंखों को कुछ दिनों से ज्यादा ही वास्ता हुआ ही होगा। तो आप समझ भी रहे होंगे हम किस एक शब्द की चर्चा यहाँ कर रहे। अब ये आत्मनिर्भर शब्द ही तो है न कोई शब्दभेदी तो नहीं न है। ये कोई आज इजात तो नहीं हुआ। हां ये शब्द एक राजनीतिक मंच से ही न आया। हमें तो खुद में शब्द की भाव रूप में भी सामर्थ का बोध दिखता है। पर ऐसा क्या आज हो गया इस भाव अब नहीं भाने लगा भी है। पर, राजनीतिक नजर से ही वरना इससे कौन अछूता रहना चाहेगा। आप ही सोचो फिर क्या हो गया अब खुद की आत्मनिर्भरता पर इतराने से। आत्मसम्मान किसको नहीं भाता भी है। आत्मसुरक्षा और आत्मरक्षा की अभी तो दूसरों के बजाय खुद से ही सबको निहायत वास्ता पड़ी है। आत्मनिर्भर होने के लिए ही तो जिंदगी में भागदौड़ है। खुद भी चाहत होती है। अब जब आज खुद को मजबूत खुद की परिस्थिति और स्थिति भी है तो इस ओर अपने आप को मजबूत करने की सोच तो रखनी भी होगी। कम से कम परिस्थितियों से लड़ने में खुद सक्षम होने में गुरेज क्या है। एक रोजी की ही सवाल न है। कुछ तो एक दूसरे पर निर्भरता भी तो चाहिए न। फिर हर्ज क्या  है बोलने, सोचने और चलने में।
                             भाव: एक सामर्थ
                

शनिवार, 30 मई 2020

https://www.facebook.com/groups/732482283604730/permalink/1514062522113365/?sfnsn=scwspmo

ख़बर से ख़बर तक: बेबसी या बेकरारी

ख़बर से ख़बर तक: बेबसी या बेकरारी:   मुसाफिरों की राहें तब बदल जाती जब  आगे रास्ते खत्म हो फिर उस रास्ते चलना खुद के बस का न हो। हां इस दो उलझन के बीच परिस्थितियां कुछ भी करा ...

ख़बर से ख़बर तक: ख़बर से ख़बर तक में बेबाक़ रहें

ख़बर से ख़बर तक: ख़बर से ख़बर तक में बेबाक़ रहें: मेरे ब्लॉग अब एक अलग अंदाज में। ख़बर से ख़बर तक के रूप में बेबाक़ बात के साथ। बेबाक़ बात आपकी राय के साथ जहां ख़बर के अंदर की सीधी बात।

ख़बर से ख़बर तक में बेबाक़ रहें

मेरे ब्लॉग अब एक अलग अंदाज में। ख़बर से ख़बर तक के रूप में बेबाक़ बात के साथ। बेबाक़ बात आपकी राय के साथ जहां ख़बर के अंदर की सीधी बात।