तेरी मुस्कुराने की साजिश क्या खूब।
जानते हम भी तेरी राज इस दास्तान।।
खबर हमें भी है तेरी गुस्ताख़ का अब।
ज़ख्म देने की अदा भी तेरी है खूब हँसी।।
संदर्भ-तेरे लिए हंसी
शुक्रवार, 1 मई 2020
गुरुवार, 16 अप्रैल 2020
ए वक़्त...
वक़्त ऐसा भी होगा शायद किसी ने कभी तनिक भी सोचा होगा। हालात ऐसे बने की जिंदगी जीने के लिए घर में सिमट गई। अब सोचिए ये क्या हो गया। कहाँ गगन में उड़ने की चाहत लिए थे। कहाँ जमीन पर भी हवा भी डराने लगी है। अब समझिए प्राकृति को। कितना सुकून देती थी। हमने क्या दिया। पीछे मुड़ कर तो देखिए जब इतनी अरमान न हुआ करती थी दुनिया कितनी उन्मुक्त थी। आज क्या नहीं पाया सोच से भी परे। क्या हुआ तनिक तो सोचिए। कहाँ गई हेकड़ी सब कुछ पा लेने की। आज कितना बेबस इंसान बना है एक अनजाने डर के आगे। प्रकृति के साथ इंसानियत की ओर फिर बढ़ें। अब तो समझिए और ठहरिए।
मंगलवार, 7 अप्रैल 2020
बुधवार, 1 अप्रैल 2020
सोमवार, 30 मार्च 2020
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