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बुधवार, 14 जून 2023

खगड़िया में आंधी और बारिश से गर्मी से हुई राहत

खगड़िया। जिले में मंगलवार की देर शाम तेज आंधी के साथ हुई मूसलाधार बारिश ने भीषण गर्मी से राहत दी। वहीं अंधी से नुुुकसान भी हुई है। वैसे दिन में भी पिछले कई दिनों की भांति तेज धूप का असर कम था। सुबह में देर से धूप निलती थी। दो दिन पहले भी रात में तेज हवा वा बारिश से मौसम में थोड़ी नरमी रही। पिछले दस दिनों से जिले सहित सूबे के कई जिले में हीट वेव चल रहा था। आलम यह था कि तापमान 44 डिग्री के आसपास पहुंच गया था। लोगों को घर से बाहर निकलना दुश्वार बना था। तेज धूप व गर्म हवा लोगों को व्याकुल कर रखा था। जो मंगलवार की शाम की आंधी व बारिश ने राहत व सुकून दिया। रात को लोगों को हल्की-हल्की ठंड के एहसास के साथ राहत मिली। वहीं आसमान में बिजली व घटा भी गरजती रही। वहीं मानसूनी बारिश होने को लेकर लोगों को गर्मी से अब राहत मिलने की उम्मीद बंधी।

मौसम वैज्ञानिक ने बारिश का जताया आसार मौसम वैज्ञानिकों ने बारिश के आसार के साथ गर्मी से राहत की उम्मीद जता रखी है। माना जा रहा है कि जिले में पुरबा हवा चलने से गर्मी से मिली लोगों को राहत की खबर है। साथ ही 15 जून से बारिश के आसार की संभावना बताई गई है। नौ से 17 किलोमीटर की रफ्तार से पूरबा हवा चलने के आसार भी जताए गए हैं। किसानों को मौसम को देखकर फसल तैयार करने की सलाह दी गई है। वैसे जिले में सुबह में आसमान में बादल छाया रहा था। सुबह में ही बारिश होने की संभावना लग रही थी। पर टल गई। जो देर शाम में तेज आंधी व बारिश हो ही गई।

तेज आंधी से बिजली हुई गुल तेज आंधी व बारिश शुरू होने के पहले ही जिले के अधिकांश हिस्सों में बिजली गुल हो गई। शाम 730 बजे बिजली गायब हो गई। इसके बाद तो और तेज आंधी के साथ मुसलाधार बारिश भी बरसने लगी थी। बारिश कई जगहों पर देर तक होती रही। बारिश थमी तो भी बिजली देर शाम साढ़े आठ बजे तक बहाल नहीं हो सकी थी। हालांकि आंधी के कारण कई जगहों पर बिजली पोल व तार के क्षतिग्रस्त होने की बात कही जा रही। जिसकी अधिकारियों द्वारा पुष्टि नहीं की जा सकी।


बुधवार, 10 मई 2023

खगड़िया जिला इतिहास के पन्नों में

खगड़िया जिले का इतिहास गौरवशाली रहा है। अतीत में फरकिया नाम से भी जाना जाता था। कहा जाता है कि16वीं शताब्दी में अकबर के वित्त मंत्री टोडरमल ने जमीन की पैमाइश की। पर यहां कि भौगोलिक स्थिति के कारण जमीन की पूरी पैमाइश नहीं कर पाए थे। तब उसने इसे फरक कर दिया, जिसपर फरकिया नाम पड़ा था। 
  1812 में मुंगेर एक अलग प्रशासनिक केन्द्र के रूप में अस्तित्व में आया था। उस समय यह पांच थानों मुंगेर तारापुर, सुर्यगढ़ा, मल्लेपुर और गोगरी में विभक्त था। 1834 में चकाई परगना रामगढ़ जिले से और बीसहजारी परगना पटना जिले से मुंगेर जिले को स्थानान्तरित किया गया। अनेक छोटे-मोटे परिवर्तन के उपरांत जुन 1874 में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ। परगना सखराबादी, दारा, सिंघौल, खड़गपुर और परबत्ता भागलपुर से मुंगेर को स्थानान्तरित हो गया। इसके साथ ही तापसलोदा, सिमरावन और सहुरी का 281 गांव एवं लखनपुर का 613.22 वर्ग मील मुंगेर के क्षेत्राधिकार के अन्तर्गत चला आया। 1870 में बेगूसराय अनुमंडल और 1943-44 में खगड़िया अनुमंडल अस्तित्व में आया। खगड़िया अनुमंडल का मुख्यालय खगड़िया ही था।
खगड़िया अनुमंडल का क्षेत्रफल 752 वर्ग मील था। 1951 की जनगणना के अनुसार इसकी जनसंख्या 584625 थी। यहां सात पुलिस थाने- अलौली, खगड़िया, चैथम, गोगरी, परबत्ता, बेलदौर एवं सिमरी बख्तियारपुर थे। सिमरी बख्तयारपुर को सहरसा जिला में समावेश करने के बाद बेलदौर को प्रखंड का दर्जा मिला था। खगड़िया जिले के अधिकांश भाग फरकिया परगना के नाम से जाना जाता है।मुंगेर के 1926 के डिस्ट्रिक्ट गेजेटर में इसे “मुंगेर उपखंड के उत्तर पूर्व भाग को एक परगना कहा जाता है, जिसमें 506 वर्ग मील का क्षेत्रफल होता है, जो मुख्य रूप से गोगरी थाना के अंदर आता है।”यह क्षेत्र पूर्व में जमींदारों के एक प्राचीन परिवार का था, जिसका इतिहास बहुत ही कम है जिसे 1787 में भागलपुर के कलेक्टर श्री अदैर ने एकत्रित किया था।15 वीं शताब्दी के करीब, दिल्ली के सम्राट ने क्षेत्र में अराजकता को रोकने के लिए एक राजपूत,विश्वनाथ राय को भेजा।उन्होंने सफलतापूर्वक इस कार्य को पूरा किया और देश के इस हिस्से में एक जमींदारी का अनुदान प्राप्त किया, और बिना किसी रुकावट के दस पीढ़ियों तक उनके वंश का अधिपत्य रहा ।इस परिवार का इतिहास, हालांकि, 18 वीं सदी की पहली तिमाही तक, बहुत कम लेकिन रक्तपात और हिंसा का रिकॉर्ड है।1926 गजटिएयर के प्रकाशन के समय, संपत्ति का अधिक से अधिक हिस्सा बाबू केदारनाथ गोयनका और बाबू देवनंदन प्रसाद की संपत्ति थी।

खगड़िया जिला भारत में बिहार राज्य का एक प्रशासनिक जिला है । जिला मुख्यालय खगड़िया में स्थित है । पहले यह उप-विभाजन के रूप में मुंगेर जिले का एक हिस्सा था जिसे 1943-44 में बनाया गया था। इसे 10 मई 1981 को एक जिले का दर्जा दिया गया था। खगड़िया जिला मुंगेर डिवीजन का एक हिस्सा है ।खगड़िया जिले का क्षेत्रफल 1,486 वर्ग किलोमीटर (574 वर्ग मील) है |यह जिला गंगा , कमला बलान , कोशी , बूढ़ी गंडक , करेह, काली कोशी और बागमती नामक सात नदियों से घिरा हुआ है।. ये नदियाँ हर साल बाढ़ का कारण बनती हैं जिससे पशुधन सहित जीवन और संपत्ति का बहुत नुकसान होता है। गंगा नदी जिले की दक्षिणी सीमा बनाती है। खगड़िया में अत्यधिक गर्म ग्रीष्मकाल और अत्यधिक ठंडी सर्दियों के साथ अत्यधिक जलवायु का अनुभव होता है। बरसात का मौसम अक्टूबर तक भारी वर्षा के साथ जारी रहता है जिससे नदियाँ उफान पर आ जाती हैं और अधिकांश क्षेत्रों में बाढ़ आ जाती है।
खगड़िया भारतीय रेलवे के बरौनी- कटिहार - गुवाहाटी रेल खंड पर एक प्रमुख रेलवे जंक्शन वाला एक छोटा शहर है। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 31, जो शेष भारत को उत्तर पूर्वी क्षेत्र से जोड़ता है, इस शहर से होकर गुजरता है। यह सहरसा और समस्तीपुर के लिए एक अन्य रेल लाइन द्वारा उत्तर बिहार के अन्य क्षेत्रों से भी जुड़ा हुआ है । मुंगेर और खगड़िया के मध्य गंगा नदी पर बने एक प्रमुख रेल सह सड़क पुल जिले को सीधे दक्षिण बिहार और झारखंड से जोड़ता है।
खगड़िया जिला इस अर्थ में दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस क्षेत्र के सामाजिक और सांस्कृतिक इतिहास के बारे में बहुत कम दर्ज किया गया है। मुंगेर के पुराने जिले के बारे में जो कुछ भी पता चला है, वह मुख्य रूप से दक्षिणी मुंगेर और कुछ हद तक उत्तर पश्चिमी मुंगेर, यानी , वर्तमान बेगूसराय जिला। सभी प्राचीन अवशेष और शिलालेख गंगा के दक्षिण में और कुछ उत्तर पश्चिम में, अर्थात् जयमंगलागढ़ (बेगूसराय) में खोजे गए हैं। मुंगेर के पुराने जिले की सांस्कृतिक विरासत का वर्णन समकालीन साहित्य में बंगाली और अंग्रेजी दोनों लेखकों के लेखन में मिलता है। मुंगेर को बंगाली कवि विजया राम सेन विशारद की पुस्तक "तीर्थ मंगल" में, बंगाल के महान नाटककार दीनबंधु मित्रा की काव्य रचना "सुरोधनी काव्य" में संदर्भ मिलता है।

विदेशियों के वृत्तांतों में, सबसे पहला वृत्तांत ह्वेन-सांग द्वारा सातवीं शताब्दी ईस्वी में है, जिसमें उन्होंने मुंगेर को "हिरण्य पौरतो" के रूप में वर्णित किया है। महान मेडिको-जियोग्राफर बुकानन हैमिल्टन, जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने देश के ऐतिहासिक और भौगोलिक खाते को संकलित करने के लिए प्रतिनियुक्त किया था, ने उन्नीसवीं शताब्दी के पहले दशक में मुंगेर का दौरा किया था, और एक खाता दिया है। 1823 में मुंगेर का दौरा करने वाले बिशप हेबर ने अपनी पुस्तक "नैरेटिव ऑफ हिज़ जर्नी थ्रू द अपर प्रोविंस इन इंडिया" के अध्याय 10 में मुंगेर का लेखा-जोखा दिया है। एमिली ईडन ने नवंबर 1857 में मुंगेर का दौरा किया और "यूपी" पुस्तक में एक खाता छोड़ा। देश"। मुंगेर का वर्णन फैनी पार्क्स की पुस्तक "वांडरिंग्स ऑफ ए पिलग्रिम" में भी मिलता है, जिन्होंने 1836 में मुंगेर का दौरा किया था; और किताब में "

खगड़िया जिले के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र के खाते के लिए विशिष्ट, 1960 गजेटियर कहता है, "ताड़ के पत्तों पर बिल्कुल कोई साहित्य नहीं है और न ही उस आशय का कोई रिकॉर्ड है। ........... किसी भी पेंटिंग का कोई रिकॉर्ड नहीं मिला है"। हालाँकि, कुछ समकालीन साहित्य इस जिले के क्षेत्र को भी कवर करते हैं।

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान की कुछ महत्वपूर्ण घटनाओं के बारे में आमतौर पर इस क्षेत्र के स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा बताया जाता है। कुछ स्वतंत्रता सेनानियों ने इसे अपने संस्मरणों और आत्मकथाओं में भी लेखों में दर्ज किया है। इनमें से एक घटना 24 अगस्त 1942 की है। उस दिन तीन अंग्रेज विमान से रेलवे लाइन का सर्वेक्षण कर रहे थे, जब उनका विमान रोहियार बंगालिया के पास नदी में गिर गया, जो वर्तमान में चौथम प्रखंड के अंतर्गत आता है। ग्रामीणों ने बदला लेने के लिए तीनों को मार डाला। सूचना मिलने पर मुंगेर के तत्कालीन कलेक्टर ने दमनकारी कार्रवाई शुरू कर दी और कई ग्रामीणों को मौत के घाट उतार दिया।

एक अन्य महत्वपूर्ण घटना प्रभु नारायण सिंह की शहादत है, जो 13 अगस्त 1942 को खगड़िया थाने की ओर एक जुलूस का नेतृत्व करते समय अंग्रेजों की गोलियों से मारे गए थे। वह खगड़िया शहर से लगभग पाँच किलोमीटर दूर माड़र नामक गाँव का रहने वाले थे। 

चौथम प्रखंड के पिपरा गांव के महेंद्र चौधरी एक और शहीद हैं, जिन्हें खगड़िया में श्रद्धापूर्वक याद किया जाता है. उन्हें भागलपुर सेंट्रल जेल में 6 अगस्त 1945 को फांसी दे दी गई थी। कहा जाता है कि महात्मा गांधी ने महेंद्र चौधरी को क्षमादान देने के लिए वायसराय वावेल से पत्र व्यवहार किया था।

ऐसा कहा जाता है कि स्वतंत्रता आंदोलन के कई महत्वपूर्ण राष्ट्रीय नेताओं ने खगड़िया में विशेष रूप से गोगरी और परबत्ता में दौरा किया था और रुके थे। स्वतंत्रता आंदोलन के महत्वपूर्ण केंद्र श्यामलाल नेशनल हाई स्कूल थे, जिसकी स्थापना 1910 में खगड़िया में हुई थी |

सांस्कृतिक रूप से, इस जिले में मेलों की परंपरा है, जो आमतौर पर हिंदू धार्मिक त्योहारों के अवसर पर आयोजित की जाती है, विशेष रूप से दशहरा और कालीपूजा में। मेला की पुरानी परंपरा चौथम ब्लॉक के एक स्थान कात्यानी स्थान में जारी है। एक और पुराना पारंपरिक मेला गोपाष्टमी(गोशाला मेला) मेला है, जो कार्तिक के महीने में गौशाला,खगड़िया के पास छठ के ठीक बाद आयोजित किया जाता है। यह मेला आज भी उसी स्थान पर और उसी समय आयोजित होता आ रहा है|

1960 के राजपत्र में उल्लेख किया गया है कि खगड़िया के गैर-सरकारी सज्जनों की मदद से कृषि और लघु उद्योगों के आधुनिक तरीकों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए नवंबर 1952 के महीने में एक कृषि और औद्योगिक प्रदर्शनी का आयोजन किया गया था। 10 दिनों तक चलने वाली प्रदर्शनी का औपचारिक उद्घाटन बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री, और कई सरकारी विभागों जैसे सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि, पशु चिकित्सा, भागलपुर के रेशम संस्थान, भागलपुर के जेल विभाग और मुंगेर, मत्स्य, कुटीर उद्योग, सबौर के कृषि खंड आदि द्वारा किया गया था। इसे 1953 में बड़े पैमाने पर लगभग एक पखवाड़े तक दोहराया गया था। हालांकि, हर किसी को वर्ष 1987 की विनाशकारी बाढ़ याद है, जब कलेक्ट्रेट और अन्य सरकारी कार्यालयों सहित खगड़िया शहर में भी भारी बाढ़ आई थी। हालांकि बाढ़ अनादिकाल से एक वार्षिक घटना बन गई है, लेकिन 1987 की बाढ़ ने लंबे समय के बाद, विशेष रूप से प्रमुख तटबंधों के निर्माण के बाद विनाशकारी निशान छोड़े।
खगड़िया शहर की हृदस्थली राजेन्द्र चौक। 

मंगलवार, 18 अप्रैल 2023

खगड़िया जिले में तापमान चढ़ा आसमान, लोग ब्याकुल

खगड़िया में तापमान चढ़ा आसमान, लोग ब्याकुल
स्कूली बच्चों की बढ़ी है समस्या, स्कूल समय में बदलाव की जरूरत
तेज धूप में जाति आधारित जनगणना कार्य में लगे कर्मियों की समझी जा सकती बेबसी
  खगड़िया जिले में भीषण गर्मी में लोगों को घर से बाहर निकलना मुश्किल हुआ है। तापमान 43 डिग्री सेल्सियस के करीब बताया जाता है। भीषण गर्मी का आलम ये है कि दिन में बाजारों की सड़कें सुनी होने है। जरूरत पड़ने पर ही लोग बाहर निकल रहे हैं। निकलते भी हैं तो सर पर टोपी और तौलिया बांधकर। छाता का भी लोग सहारा लेकर सर को धूप से बचाने की जुगत कर निकलते हैं। पर, धूप और उमसभरी गर्मी से राहत नहीं है। हिट वेव की स्थिति को लेकर अलर्ट भी जारी की गई है। एक तो तेज धूप और गर्म हवा लोगों को घर के अंदर भी बेचैन कर रहा है। दूसरी ओर धूप में निकलना कुम्हला दे रहा है। गर्म हवा और तेज धूप लोगों को लू की चपेट में ले रही है। एक ओर जहां लोगों को तेज धूप और गर्म हवा से बचने की सलाह दी जाती है तो दूसरी ओर सेकेंड चरण की जाति आधारित जनगणना कार्य इस भीषण गर्मी और तेज धूप में करवाया जा रहा है। तेज धूप में कर्मी घर घर जाकर प्रपत्र भरने में ब्याकुल हो रहे हैं। उमसभरी गर्मी से घर में पंखे की हवा में राहत नहीं है ऐसे में घर घर घूमने वाले कर्मियों की बेबसी को समझा जा सकता है। चिकित्सक भी लोगों को धूप में निकलने से बचने की सलाह देते हैं। पर सरकार इस हिट वेव के बीच जनगणना का कार्य की जा रही है। जबकि सुबह से शाम तक तेज धूप और गर्म हवा रहती है। ऐसे में कर्मियों को कार्य करना भी मुश्किल हो रहा है।
  स्कूली बच्चों की बढ़ी है परेशानी: भीषण गर्मी में जहां घर से बाहर निकलना लोगों को मुश्किल हो रहा है। स्कूलों में गर्मी में बच्चों की पठन पाठन भी प्रभावित हो रहा है। वहीं स्कूली बच्चों के लिए परेशानी का सबब हुआ है। जी हां अभी स्कूल का समय सुबह साढ़े छह से साढ़े 11 बजे तक रखा गया है। जबकि सुबह से ही तेज धूप निकल रही है। लगातार कई दिनों से गर्म हवा भी चल रही है। ऐसे में साढ़े 11 बजे स्कूल से छुट्टी बाद घर लौटने के समय बच्चों को तेज धूप लग रही है। बच्चे बीमार पड़ने भी लगे हैं। वहीं सुबह बच्चे भूखे ही स्कूल आते हैं, जबकि मध्यह्न भोजन खाने का समय साढ़े 11 बजे रखा गया है। गर्मी में भूखे पेट भी देर तक रहने से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ने की संभावना बनी है। स्कूल की छुट्टी के समय में बदलाव करते हुए साढ़े 10 बजे तक स्कूल संचालन करने की जरूरत लोगों और अभिभावक जता रहे हैं। स्टूडेंट्स हित में इस ओर जिला प्रशासन को गम्भीर ध्यान देनी चाहिए। ताकि गर्मी की चपेट में बच्चे नहीं आ सके।
   शीतल पेयजल की हो व्यवस्था: भीषण गर्मी पड़ रही है। शहर और गांव के चौक चौराहों पर शीतल जल की व्यवस्था प्रशानिक स्तर पर की जानी चाहिए। ताकि राहगीरों को प्यास बुझाने के लिए शीतल पानी के लिए तरसना और भटकना नहीं पड़े। शहर में बाजार के मुख्य जगहों पर अभी भी ये व्यवस्था नहीं दिखती है। यहां तक कि बस स्टेशन और रेलवे स्टेशन पर भी शीतल जल की व्यवस्था पर्याप्त नहीं की गई है। गर्मी में शरीर को पानी की अधिक जरूरत होती है। ऐसे में प्यास भी खूब लगती है। गरीब लोग को खरीदकर पानी पीने में आर्थिक समस्या न हो जगह जगह सरकारी स्तर से पानी की व्यवस्था होनी चाहिए।

बुधवार, 5 अप्रैल 2023

खगड़िया: स्कूली बच्चों तक नहीं पहुंची निःशुल्क किताबें

खगड़िया जिले के प्रारंभिक स्कूलों में नए सत्र की पढ़ाई शुरू है। पर, बच्चों को मिलने वाली निशुल्क पाठय पुस्तक नहीं मिली है। आलम यह है कि अब तक कक्षा तीन, चार, पांच, छह व सातवीं के बच्चों के लिए किताबों के सेट राज्य से जिला को भी उपलब्ध नहीं हो सकी है। यह बात और है कि कक्षा एक, दो व आठवीं के बच्चों को मिलने वाली निशुल्क पाठय पुस्तक बीआरसी को उपलब्ध करायी जा चुकी है। 

पहली अप्रैल से शैक्षणिक सत्र 2023-24 की पढ़ाई शुरू है। विभागीय सूत्रों की मानें तो इस सत्र के लिए जिले के 1060 प्रारंभिक स्कूलों के कक्षा एक से आठवीं तक में तीन लाख 55 हजार 59 बच्चों के लिए किताबों के सेट की डिमांड राज्य से की गई है। पर, महज कक्षा एक, दो व आठवीं के एक लाख 20 हजार 380 बच्चों के लिए ही विभिन्न प्रखंडों में किताबों का सेट पहुंची है। पर, वह भी स्कूलों तक बच्चों के लिए नहीं भेजी गई है।

इस सत्र से किताब सेट उपलब्ध कराने हुई है व्यवस्था इस शैक्षणिक सत्र से कक्षा एक से आठवीं तक के छात्र व छात्राओं को फिर से निशुल्क पाठय पुस्तक देने की व्यवस्था की गई है। इससे पहले पिछले कुछ सालों से बच्चों को किताब खरीदने के लिए खाते में ही डीबीटी के माध्यम से राशि उपलब्ध कराई जा रही थी। शिक्षा अधिकार अधिनियम के तहत पहले विभाग द्वारा बच्चों को किताब सेट ही उपलब्ध कराया जा रहा था। हाल के कुछ सालों से राशि ही दी जाने लगी। अब इस सत्र से फिर से किताब ही देने की व्यवस्था की गई है। जाहिर है कि जब जब किताब उपलब्ध कराई जा रही थी सत्र शुरू होने बाद ही बच्चों तक किताब पहुंच रही थी। यहां तक कि राशि जब देने लगी तो राशि भी सत्र शुरू के कई माह बाद राशि भेजी जाती थी। यहां तक अधिकांश बच्चे बिना किताब के ही कक्षा में पढ़ाई कर लेते थे। यही हाल फिर से अधिकांश बच्चों के सामने उत्पन्न हुई है।

जिले में प्रारंभिक स्कूलों के विभिन्न कक्षाओं के दो लाख से अधिक बच्चों के लिए किताबों के सेट जिले में आने का इंतजार है। उल्लेखनीय है कि अभी महज पहली, दूसरी व आठवीं कक्षा के लिए ही सातों बीआरसी में किताब पहुंची हैं। जहां से स्कूल ले जाया जाना है। इधर बता दें कि जिले में हिन्दी से जुड़ी तीन लाख 36 हजार 62 किताब की सेट की जरूरत है। वहीं उर्दू की 1288 सेट किताब की डिमांड की गई है। मिक्स किताब की सेट 17 हजार 709 की डिमांड हैं। अब देखना है कि जिस कक्षा की किताब जिले में राज्य से नहीं भेजी गई है, तब तक आती है। तब तक बच्चों को बिना किताब के ही स्कूल में पढ़ाई करने की मजबूरी रहेगी।


रविवार, 2 अप्रैल 2023

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शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2023

खगड़िया कुशेश्वरस्थान रेल परियोजना आधे से अधिक भाग में काम अधूरा

खगड़िया-कुशेश्वर स्थान रेल परियोजना के बड़े भाग में काम अभी भी शुरू नहीं हो सका है। 24 साल में महज साढ़े 18 किलोमीटर तक ही ट्रैक बिछ पाया है। 44 किलोमीटर लंबी इस रेल परियोजना में खगड़िया से अलौली तक अब पहले पैसेंजर ट्रेनें चलाई जाने की तैयारी जरूर है। परियोजना के कच्छप गति से चलने का आलम यह है कि नौ बड़े पुलों में चार पुलों का निर्माण भी शुरू नहीं होने की बात कही जा रही है। हालांकि खगड़िया से कुशेश्वर स्थान के बीच बनने वाले सभी 54 छोटे पुल व पुलिया जरूर बन रहा है। वहीं रेलवे स्टेशन भवन भी तीन जगहों को छोड़कर तैयार नहीं हुआ है। यहां तक कि चेराखेरा में स्टेशन भवन बनने की तैयारी भी नहीं देखी जा रही है।

तीन स्टेशन भवन बनकर तैयार: महज विशनपुर, कामाथान व अलौली गढ़ में स्टेशन भवन बनकर पूरी तरह से तैयार है। अलौली गढ़ आउटर सिगनल के बाद परियोजना का काम वर्तमान में भी नहीं दिखता है। अलौली के बाद चेराखेरा व शहरबन्नी के बीच मिट्टी भराई भी नहीं की जा रही है। अलौली से चेराखेरा के बीच नदी पर बड़ा पुल बनना है जो नहीं पूरा हुआ है। पिछले साल तक चेराखेरा व शहरबन्नी में परियोजना के अंतर्गत जिन किसानों की जमीन गई थी उसे मुआवजा का भी मामला पड़ा था। इससे आगे कुशेश्वर स्थान तक तेज गति से काम नहीं दिख रहा है। ऐसे में यह परियोजना के अगले दस साल तक पूरा होने में समय लग सकता है। हालांकि जिस अनुसार आवंटन इस बार दिया गया है ऐसे ही आवंटन मिले तो इससे पहले भी परियोजना के पूरी होने की उम्मीद की जा सकती है।खगड़िया-कुशेश्वर स्थान रेल परियोजना के बड़े भाग में काम भी शुरू नहीं हुआ है। 44 किलोमीटर लंबी इस रेल परियोजना में महज साढ़े अठारह किलोमीटर तक ही रेलवे द्वारा ट्रैक बिछाया जा सका है। परियोजना के कच्छप गति से चलने का आलम यह है कि नौ बड़े पुलों में चार पुलों का निर्माण भी शुरू नहीं होने की बात कही जा रही है। हालांकि खगड़िया से कुशेश्वर स्थान के बीच बनने वाले सभी 54 छोटे पुल व पुलिया जरूर बन रहा है। वहीं रेलवे स्टेशन भवन भी तीन जगहों को छोड़कर तैयार नहीं हुआ है। यहां तक कि चेराखेरा में स्टेशन भवन बनने की तैयारी भी नहीं देखी जा रही है। 

  हालांकि जिस अनुसार आवंटन इस बार दिया गया है ऐसे ही आवंटन मिले तो इससे पहले भी परियोजना के पूरी होने की उम्मीद की जा सकती है।


इस बजट से 237 करोड़ राशि गई थी मांगी: परियोजना को गति से पूरा करने के लिए इस बजट में 237 करोड़ की राशि की जरुरत जताई गई थी। पर, मिला महज 65 करोड़ ही। बता दें कि 162 करोड़ की परियोजना में अब छह सौ करोड़ से अधिक की लागत आ रही है। ऐसे में अब तक जितने आवंटन मिले हैं उसके बाद करीब दो सौ करोड़ की राशि मिलनी है। यह राशि अगले वित्तीय साल में एक साथ मिल जाने पर परियोजना में गति आ सकती है। जिससे लोगों को जल्द इस रूट में ट्रेन से आने व जाने का सपना साकार हो सकेगा।

● परियोजना में महज साढ़े 18 किलोमीटर तक ही बिछा ट्रैक

● इस बजट से 237 करोड़ की मांगी गई थी राशि, मिली महज 65 करोड़