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मंगलवार, 10 मई 2022

खगड़िया जिला बना तो, विकास की लिखी कई गाथाएं...

खगड़िया जिले के रूप में 41 साल का सफर पूरा किया। इस सफर में कई उतार चढ़ाव भी देखे। 

जिले ने अपने नाम अनेकों उपलब्धि जोड़े तो कई कसक आज भी बांकी है। 

सात नदियों से घिरे खगड़िया के दर्जनों गांव हर साल बाढ़ की विभीषिका भी झेलती आ रही है।

स्थापना के बाद ये पहला अवसर है, जब 41वां स्थापना दिवस को समारोह के रूप में जिला मना रहा। 

खगड़िया एक नजर में: 10 मई 1981 को मुंगेर से अलग होकर खगड़िया स्वतंत्रता जिला बना। 30 अप्रेल 1981 को बिहार सरकार की अधिसूचना से  जिला बना था। इससे पहले 1943-44 में खगड़िया अनुमंडल के रूप में मुंगेर जिला अंतर्गत बना था। खगड़िया का इतिहास गौरवशाली और कई मायनों में खास है। ये धरती पौराणिक धार्मिक रूप में मां कात्यायनी मंदिर शक्तिपीठ रूप में  है। 52 कोठरी 53 द्वार की धरोहर है। कहते हैं कि 5वी शताब्दी पूर्व मुगल शासक अकबर के मंत्री टोडरमल ने जब यहां की भौगोलिक बनावट के करण जमीन की पैमाइश नहीं कर सके, तो इसे फरक कर दिया। तब से फरकिया नाम से जाना जाता है। 

    दो अनुमंडल, सात प्रखंड, अब दो नगर परिषद, तीन नगर पंचायत वाले जिला 10863 वर्ग किमी में फैला है। जहां सात नदियां भी बहती है। दो एनएच और कई रेलखंडों से जुड़ी खगड़िया सीमा से बेगूसराय, सहरसा, भागलपुर, समस्तीपुर, मधेपुरा और मुंगेर जिला लगती है। खगड़िया मक्का उत्पादन में एशिया में अव्वल है, तो ये दूध, दही, मछली की धरा के रूप में जानी जाती है। शहीदों की धरती भी रही है। देश को आजादी दिलाने में प्रभुनारायण और धन्ना-माधव ने अपनी प्राणों की आहुति थी। दानवीर कर्ण की धरती पर श्यामलाल और अवध बिहारी भी दानवीर हुए। 

अपना खगड़िया इस 41 सालों में हर मुकाम पर तरक्की की कई  गाथाएं लिखी है। चाहे खेल हो या राजनीति की पटल पर देश ही नहीं अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई है। इस लंबे सफर में  अनेकों उपलब्धि नाम की, तो कुछ कसक अब भी बांकी है। इतिहास के पन्नों में कई स्वर्णिम  मुकाम बनाई। तो इस धरती ने कई ऐसे हादसों को भी दिखाया है, जो आज भी लोगों को विचलित करती है। स्थापना काल के बाद से  41 वां स्थापना दिवस को  जिला प्रशासन समारोह के रूप में मनाया। 

खगड़िया में है कोशी का कैब्रिज: आजादी की याद को समेटे 1947 मेें स्थापित कोशी कॉलेज जिले की पहचान कोशी की कैब्रिज के रूप में दिलाई। तब के एसडीओ और स्थानीय शिक्षाविदों ने जमीन और धन दानकर इस शिक्षा की मंदिर को स्थापित किया था। आज भी अपनी भव्यता और नाम के साथ अतीत को बता रहा है। अब यहां पीजी  स्तर तक की पढ़ाई होती है। महिला कॉलेज सहित चार स्नातक स्तरीय कॉलेज है। 

1992 में खगड़िया जुड़ गया था व्यवसायिक शिक्षा से: 1992 में सूबे के कुुुछ गिने चुने जिले केे साथ खगड़िया में भी इंटर स्तरीय व्यवसायिक शिक्षा की व्यवस्था हो गई थी।  शहर के जेएनकेटी स्कूल में इसे स्थापित किया गया। साल 2011 से तकनीतिक शिक्षा की ओर कदम तेजी से बढ़ा। आज तीन  iti college है। anm कॉलेज है। पोलटेक्निक, इंजीनियरिंग कॉलेज की भवन बनकर पढ़ाई के लिए तैयार खड़ा है। केंद्रीय विद्यालय और जवाहर नवोदय विद्यालय है। सरकारी डीएलएड प्रशिक्षण केंद्र है। तीन बीएड कॉलेज भी खुला है। अभी 137 माध्यमिक और प्लस टू स्तरीय स्कूल है, जो हर पंचायत में स्थापित है। 1061 सरकारी प्रारम्भिक स्कूल है, जो हर टोले से जुड़ा है। अब गांव सीधे स्वास्थ्य सुविधा से जुड़ा है। खगड़िया को विकास के पथ पर बढ़ाने और नाम बढ़ाने में हर कोई ने  जब जहां अवसर और मौका मिला कसर नहीं छोड़ी। 

देश की राजनीति की पटल पर खगड़िया: देश ही नहीं विदेशों में खगड़िया की राजनीति की पहचान बनी है। जिले के अलौली प्रखंड के नदी पार के गांव शहरबन्नी से निकल कर तीन भाइयों ने देश की राजनीति में धाक जमाया। शहरबन्नी गांव मेें 1946 में जन्मे रामविलास पासवान ने वर्ष 1977 में हाजीपुर लोकसभा क्षेत्र से पांच लाख से अधिक मतों से चुनाव जीतकर गिनीज बुक ऑफ व वर्ल्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज कराया, जो देश के इकलौते राजनेता थे। छह प्रधानमंत्री के कार्यकाल में कैबिनेट मंत्री रहे। मरणोपरांत भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया। पद्मभूषण सम्मान प्राप्त करने वाले वाले राज्य के वे पहले राजनेता हुए। वे राष्ट्रीय पार्टी बनाकर राजनीति की विरासत अपने पुत्र के हाथ सौपी। अब उनके छोटे भाई पशुपति पारस केंद्र में मंत्री हैं। 

खगड़िया ने दी मुख्यमंत्री: जिले के सतीश प्रसाद सिंह वर्ष 1968 में सूबे मुख्यमंत्री बने थे। वे सूबे के छठे व पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने थे। वर्ष 1968 में 27 जनवरी से 5 फरवरी तक वे मुख्यमंत्री रहे। वे पसराहा के पास अपने नाम पर सतीशनगर गांव बसाया। 

खेल के मैदान पर खगड़िया: खेल के मैदान पर भी खगड़िया ने देश ही नहीं अंतराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई। गोगरी प्रखंड अन्तर्गत शिरनिया गांव  के फुुुटबॉलर विधानचंद्र मिश्रा वर्ष 1965 में भारतीय टीम में चुने गए। पाकिस्तान के शीर मूल्तान में ईरान व रूस के खिलाफ गोलकर भारतीय टीम को जीत दिलायी थी। जलकौड़ा के फुटबॉलर मो सरफराज साल 2021 में बिहार सीनियर फुलबॉल टीम के कप्तान की जिम्मेदारी संभाली। 2019 में हुई संतोष ट्रॉफी में सरफराज ने बिहार की ओर से बंगाल में मेजबान टीम को एक गोल दागकर जीत दिलाई थी। मानसी के चकहुसैनी की नेहा सीनियर महिला फुटबॉल टीम का हिस्सा बन चुकी है। खेल मंत्री से सम्मानित भी हो चुकी है। महिला क्रिकेट में  विशालाक्षी  और अपराजिता सीनियर महिला नेशनल मैच खेल जिला का मान बढ़ाई है। हॉकी में सोनम और ज्योति सब जूनियर महिला नेशनल खेली। नवनीत कौर और ख़ूबशु सीनियर महिला नेशनल  खेल चुकी है। बालक हॉकी में भी नाम है। 

योग और संगीत की भी बजी धुन: जिले की योगपरी श्रेया त्यागी चार साल की उम्र में ही वर्ष 2015 में राष्ट्रीय बाल पुरस्कार जीत चुकी है। योग गुरु बाबा रामदेव ने नन्ही योग गुरु की उपाधि दी थी। दर्जनभर से अधिक अवार्ड से सम्मानित होकर जिले को योग में पहचान दिलाई। लोक गायक सुनील छैला बिहारी अंगिका गीत के माध्यम से सूबे के अलावा दूसरे प्रदेशों में जाने जाते हैं। एक दौर था जब हर जगह छैला बिहारी की गीत की धूम थी। इसके अलावे साहित्य में भी खगड़िया की लेखनी की पहचान है। 

By- Rajeev



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