मेरे ब्लॉग पर बेबाक़ और सीधी बात।
वसूल ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया वरना हम भी काम के थे आदमी
तारों जैसी हुई किस्मत है मेरी मेरी बिखरने की करते हैं दुआ चाहत लिए हर कोई है अपनी मेरे टूटने की करते हैं फरियाद
इंसानों की बस्ती आज है खाली खिला चमन आज हर तरफ है वीरान उड़ने की हौसले आज है मायूस चहकी है गगन बस उड़ते आज पंछी
वादे वफ़ा कर के तो देखो रुसवा फिर न रह पाओगी रुठने की फिर न होगी वजह बस एक इरादे प्यार तो कर